Robert__ kiyosaki__









About Book :

बच्चो को फाईनेंशियल एजुकेशन स्कूल में नहीं बल्कि घर में दी जानी चाहिए. स्कूल और यूनिवरसिटीज़में अभी करिकुलर्समें फाईनेंशियल एड्जुकेश को उतनी इम्पोर्टेस नहीं मिलती है जितनी कि मिलनी चाहिए वो भी तब जबकि ज्यादा से ज्यादा बच्चे एजुकेशन लेने यहां आते है. ये बुक फाईनेंशियल एक्सपीरिएंस देगी जिसके बारे में आपने स्कूल में थोडा बहुत या ना के बराबर पढ़ा है. 

1 . इस बुक के ऑथर कौन है? 

रोबर्ट टोरू कियोसाकी एक अमेरिकन बिजनेसमेन और आऑथर है, उनका जन्म 8, अप्रेल, 1947 को हुआ था. कियोसाकी रिच ग्लोबल एलएल सी और रिच डैड कंपनी के फाउंडर है जो बुक्स और वीडियोज के शभ्रू लोगो को पर्सनल फाइनेंस और बिजनेस एजुकेशन प्रोवाइड कराती है. कंपनी का मेन रेवेन्यू सोर्स रिच डैड की फ्रेंचाइजी सेमिनार्स है जोकि इंडीपेंडेंट लोग कियोसाकी का ब्रांड नेम यूज़ करके कंपनी को फ़ीस के तौर पर देते है. कियोसाकी ने अब तक 26 से भी ज्यादा मोटीवेशनल सेल्फ हेल्प बुक्स लिखी है जिनमे से रिच डैड पूअर डैड और व्हाई ए स्टूडेंट वर्क्स फॉर सी स्टूडेंट” काफी पोपुलर बुक्स है. 

2: इस बुक से हम क्या सीखेंगे? 

आज सिर्फ कॉलेज की डिग्री हाथ में लेकर आप पैसे नहीं कमा सकते इसके लिए फाईनेंशिय्ल नॉलेज का होना भी ज़रूरी है. आज ज़रूरत है कि स्कूल कॉलेज में ऐसे रूज्केट्स पढाये जाए जो स्टूडेंट्स को फ़ूड चेन के टॉप तक लेकर जाए. क्योंकि लाइफ में थ्योरीकल नॉलेज से काम नही चलता आपको प्रेक्टिकल नॉलेज भी चाहिए जो आप रियल लाइफ में अप्लाई कर सके

      

 एन एजुकेशनल क्राईससिस :

(An Educational Crisis ) 

फर्स्ट वाले चैप्टर में रोबर्ट टी. कियोसाकी (Robert T.Kiyosaki) आर्ग्यू (argues) करते है कि फाईनेंशियली इम्पोर्टेट स्टफ (financially important stuff) स्कूल में नहीं बल्कि घर में पढाया जाना चाहिए। स्कूल और यूनिवरसिटीज़ (universities) में बच्चो और टीनएजर्स का  नंबर फास्ट इनक्रीज हो रहा है हालांकि अभी करिकुलर(curricula) में फाईनेंशियल एडजुकेश को उतनी इम्पोर्टेस नहीं मिली है। ये बुक फाईनेंशियल एक्सपीरिएंस (financial experience) देगी जिसके बारे में आपने स्कूल में थोडा बहुत पढ़ा। आथर मानते है कि फाईनेंशियल क्राईसिस की वजह गरीब और अन एजुकेटेड लोग नहीं है बल्कि अमीर लोग है। आज की एजुकेशनल सिस्टम में लांगेस्ट लेग इन टाइम यानी कि टाइम गेप काफी ज्यादा है। 


ए लेग इन टाइम(A lag in time ) किसी आईडिया के कंसीविंग (conceiving) और उसके एक्चुअल इम्प्लीमेंटिंग (actually implementing ) के बीव काडिफ़रेंस होता है। एक बार आप इस बुक से ये नालेज लेंगे तो आगे अपने बच्चो को भी ये नालेज पास कर सकते है। ताकि आप उन्हें बगैर पैसे दिए भी फाईनेंशियल हेड स्टार्ट दे सके। रोबर्ट टी। कियोसाकी ने डिसाइड किया कि वो आर्मी की अपनी जाब छोडकर ऐसे सब्जेक्ट की स्टडी करेंगे जिनके बारे में स्कूल या कालेज में रूटीनली नहीं पढ़ाया जाता। 


द फेयरी टेल इज ओवर:

( The Fairy Tale Is Over )

 पुराने टाइम में लाइफ किसी फेयरी टेल जैसी ईजी होती थी जहां आप कालेज जाकर डिग्री लेते थे और किसी किसी कंपनी में आपको एक हाई पेईंग जाब मिल जाती थी जिससे आप अपने सारे स्टूडेंट लोन्स चुका देते थे। लेकिन बदकिस्मती से अब वो बात नहीं रही। आजकल एक स्टूडेंट की लाइफ किसी रोड ट्रिप जैसी होती है, पहले कालेज जाना, ग्रेजुएट होना, और स्टूडेंट लोन्स के साथ साथ इंटरेस्ट भी बढ़ता जाता है जो एक्चुअल में स्टूडेंट्स को और भी पूअर बना देता है। और ऊपर से अनएम्प्लोयमेंट क्राइसिस( Unemployment) की वजह से ना सिर्फ अमेरिका बल्कि सारी दुनिया के स्टूडेंटस जाबलेस घूम रहे है और ये साइकल(Cycle) चलता जाता है। 


पेरेंटस सोचते है कि हमारे बच्चे को कालेज में एडमिशन मिल गया तो बस अब उसकी लाइफ सेट है। कालेज में एडमिशन मिलना कोई लाइफ जैकेट नहीं है और जिस हिसाब से अनएम्प्लोयेमेंट (Unemployment) बढती जा रही है और लोग लो वेजेस पे काम कर रहे है उससे यही प्रूव होता है। कई मशहूर केरेक्टर्स जैसे ज्योर्ज वाशिंगटन ( George washington) और बेंजामिन फ्रेंकलिन ( Benjamin Franklin ) ने तो अपनी स्कूली एजुकेशन भी फिनिश नहीं की थी। पाइंट ये है कि आपको वो सब्जेक्टस पढने चाहिए जो आपको फ़ूड चेन के टाप तक ले जाये। रोबर्ट टी। कियोसाकी का माइक नाम का एक फ्रेंड था जिसके पापा का निकनेम रोबर्ट के अकोर्डिग(according) "रिच डैड” था। 


रिच डैड मोस्ट आफ़ द टाइम रोबर्ट के साथ मोनोपोली खेला करते थे जो रोबर्ट के लिए एक आई ओपनिंग( eye-opening) एक्स्पिरियेंश था। लेकिन रोबर्ट के डैड को ये बात पंसद नहीं थी, उन्हें लगता था कि उसे खेलने के बजाये अपना होमवर्क करना चाहिए। रोबर्ट रिच डैड के लिए फ्री में काम किया करता था क्योंकि रिच डैड रोबर्ट के माइंड से पैसे के लिए काम करने का आईडिया मिटा देना चाहते थे। वो चाहते थे कि रोबर्ट एक कैपेटीलिस्ट(capitalist) बने। फ्यूचर में रोबर्ट में फाईनेनशियल एजुकेशन के लिए कई सारी कंपनीज खोली जहां बोर्ड गेम्स प्रोड्यूस किये जाते थे जिससे लर्निंग एक्स्पिरियेंश ईजीयर(easier)और फन हो। दूसरी की थी मनी के बारे में आर्ग्यूमेंट के बजाये ओपनिंग डिस्कसन करना। मनी प्राब्लम हर घर में डिस्कस होनी चाहिए ताकि इस बारे में ज्यादा नालेज इनक्रीज हो और ऐसे सोल्यूशन मिल सके जो नार्मली किसी के माइंड में नहीं आते है। 


 


प्रीपेयर योर चाइल्ड फॉर द वर्स्ट :

  (Prepare Your Child For the worst ) 


ओनेस्ट (honest) और रयूड[(rude) होने के बीच में एक फाइन लाइन है। सेम चीज़ अप्लाई होती है जब आप अपने बच्चे को फ्यूचर के लिए प्रीपेयर करे। अपने बच्चो को लाइफ की रियेलिटीज़ ( life realities) से बचाने की कोशिश ना करे और ना ही ओवर प्रोटेक्टिव प्रेरेंटस बने। उन्हें फ्यूचर के लिए प्रीपेयर करे। बच्चो के सामने 4 मेन प्रोब्लम्स आती है जो उन्हें शायद फेस करनी पड़े। और उन्हें इसके लिए रेडी रहना चाहिए। फर्स्ट प्राब्लम है बड़े होने की। 


अब यहां प्राब्लम ये है कि डेकलाइनिंग (declining)इकोनोमीके साथ गवर्नमेंट के पास इतने रिसोर्सेस (resources) नहीं होंगे कि सबको ज़रूरी हेल्थकेयर फेसिलिटीज़ और पेंशन वगैरह प्रोवाइड की जा सके। और बढती उम्र अपने साथ कुछ प्राब्लम्स भी लेकर आती है जैसे कि मल्टी जेनेरेश्नल हाउसिंग(multi-generational housing) मतलब कि पेरेंटस बच्चो के घर रहने चले जाते है या फिर बच्चे पेरेंटस के घर मूव हो जाते है। केस जो भी हो लेकिन इससे हाउस ओनर के खर्चे ज़रूर बढ़ जाते है। एक और मेजर प्राब्लम है हेल्थ केयर जोकि गवर्नमेंट के टैक्स का सारा पैसा चूस लेती है। 


हमारे बच्चो की सेकंड मेजर प्राब्लम है 

कम्पाउंड डेट (Compound debt जिसे आइन्स्टाइन(Einstein) ने दुनिया के मोस्ट पावरफुल फ़ोर्स के रूप में डिसक्राइब किया है। थर्ड प्राब्लम है न्यू डिप्रेशन। क्या कमिंग डिप्रेशन (Coming depression) 1929 के ग्रेट यू।एस। डिप्रेशन के जैसा हो होगा जहां सेवर्स विनेर्स थे या फिर 1920 के जर्मन हाइपरइन्फ्लेशन (German hyperinflation) के जैसा जहां डेटर्स यानी उधारी वाले विनर्स थे। हमारे बच्चो को दोनों ही सिनेरियोज़ (scenarios) के लिए रेडी रहना होगा। फोर्थ चैलेन्ज (fourth challenge) है हाई टैक्स (taxes) आने वाले फ्यूचर में टैक्स और भी हाई होंगे क्योंकि ज्यादा मनी प्रिंट करने के लिए ज्यादा टैक्सेस लगाने होंगे। और ज्यादा कोम्प्लेस्क (Complex) वाली बात ये है कि वेलफेयर प्रोग्राम्स( welfare programs) को ज्यादा फण्ड की ज़रूरत पढेगी जिसे कि टैक्स फंड करते है। एक डायाग्राम (diagram) है जिसे कैश (cash flow diagram) के नाम से जाना जाता है। 


ये वर्कफ़ोर्स को एम्प्लोयीज़ (employees) में डिवाइड करता है स्माल बिजनेस, बिग बिजनेस और इन्वेस्टर्स। इस डायाग्राम(diagram)की सिग्नीफिकेसं (significance) ये है कि इसमें हर सेक्टर का टैक्स पेमेंट का परसेंटेज डिफरेंट है। स्माल बिजनेस और एम्प्लोयीज सेक्टर सबसे ज्यादा टैक्स पे करता है। इसीलिए अपने बच्चो को स्कूल भेजने और उन्हें एक अच्छी सी सिक्‍योर जाब करने के लिए एंकरेज (encourage) करने का ये मतलब भी होगा कि आप उन्हें हाईर अमाउंट आफ़ टैक्स पे करने के लिए भी बोल रहे है। इसके पीछे आईडिया यही है कि ऐसा सेक्टर चूज़ किया जाए जहां आपको कम टैक्स देना पड़े। हालांकि बच्चो को डिफरेंट सेक्टर्स के बारे में पता होना चाहिए ताकि वे अपने चाइस के हिसाब से डिसाइड करे कि उन्हें क्या बनना है। 


किसी बड़े बिजनेस को ज्वाइन करना या इन्वेस्टर सेक्टर में जाने के की कोई स्पेशिफिक एजुकेशन लेवल या एज नहीं होती। इसके लिए सिर्फ हार्ड वर्किग और ट्रस्टवर्थी (Trustworthy) लोगो का साथ चाहिए। एक पेरेंट का सबसे क्रूशियल रोल (crucial roles) होता है अपने बच्चे में लर्निंग की हैबिट डेवलप कराना। अगर आपके बच्चे ने बी और आई सेक्टर ज्वाइन करना सीख लिया तो फिर कोई फर्क नहीं पड़ता कि वो कौन सा प्रोफेशन चूज़ करेगा। आथर को लगता है कि टैक्सेस गरीबो का पैसा चुराने का एक तरीका है बस और टैक्स पे करना कोई नेशनल ड्यूटी नहीं होती। 


और इस चोरी के पीछे की वजह है लैक आफ़ फाइनेनशियल एजुकेशन (Lack of financial education) और एक कहावत है कि” जो पास्ट याद नहीं रखते, अक्सर इसे दोहराते है” “दोज़ देट केननोट रिमेम्बर द पास्ट आर कंडेमनड टू रिपीट इट’’(‘’ those that cannot remember the past are condemned to repeat it ) पास्ट जेनेरेशन ने हिस्ट्री ((hostory) से कुछ नहीं सीखा। आज की दुनिया को टैक्सपेयर्स के रूप में जाना जा सकता है जो डे बाई डे गरीब होते जा रहे है और बैंकर्स अमीर होते जा रहे है। अपने बच्चे को फाईनेंशियल हेड स्टार(financial head start ) देने के लिए रियल लाइफ प्रोब्लम्स को चैलेन्ज की तरह ले जहां आप उसे डिफरेंट सोल्यूशन आफर करे और उसके साथ मैटर डिस्कस करे।


विंडोज ऑफ लर्निंग :

           ( Windows of Learning


जैसे जैसे बच्चे बड़े होते है उन्हें पैसे की इम्पोर्टेस पता चलती है। आपका बच्चा 1 और 5 डालर के बिल में डिफ़रेंस समझनेलगे तो उसकी फाईनेंशियल एजुकेशन स्टार्ट कर दो। हम बच्चे की लाइफका लर्निंग फेस 3 विंडोज में डिवाइड कर सकते है। फर्स्ट विंडो है क्वांटम लर्निंग (quantum learning) जोकि पैदा होने से 12 इयर्स की एज के बीच है। ये लर्निंग का वो फेस है जहां पेरेंटस को पता चल जाता है कि उनका बच्चा अपने ब्रेन का लेफ्ट हिस्सा (म्यूजिक और आर्टस में ज्यादा इंटरेस्ट) ज्यादा यूज़ करता है या राईट हिस्सा (लीनियर बुक्स वगैरह में ज्यादा इंटरेस्ट)। टीचिंग के लिए गेम्स को बेस्ट टूल इसीलिए माना जाता है क्योंकि ये सेम टाइम में हमारे ब्रेन के दोनों हिस्सों के एंगेज रखता है जोकि लर्निंग प्रोसेस को इमोशनल और मेंटल दोनों बनाती है। 


फर्स्ट लर्निंग विंडो की सिग्निफिकेसं 


(Significance ) यही है कि हमारा ब्रेन अनयूज्ड पार्टस (Unused part ) को इरेज(erase) कर देता है और यही वजह है कि उम्र बढ़ने के साथ साथ लर्निंग डिफिकल्ट होती जाती है। लर्निंग के सेकंड विंडो को रेबेलियस फेस

(ebellious phase) कहा जाता है। ये 12 से 24 की एज के बीच होता है। इस तरीके की लर्निंग में बच्चे पेरेंटस की बातो के कोंट्रेडिक्ट(contradic) बिहेव करते है यानी पेरेंटस जो बोलते है उसके अपोजिट चलते है। बच्चे ऐसा इसलिए करते है क्योंकि उनमे क्यूरियोसिटी होती है। इस पीरियड की सिग्निफिकेस ये है कि टीनएजर्स इस फेस में अपने एक्स्पिरियेंश से लर्न करते है। थर्ड लर्निंग विंडो 24 से 56 के बीच की एज में होता है। 


ये वो टाइम है जहां एक एडल्ट प्रोफेशनल लर्निंग करता है और उसकी फेमिली लाइफ स्टार्ट हो चुकी होती है। इस फेस की सिग्नीफिकेसं है कि लाइफ अचानक पैसे के पीछे घूमने लगती है। अगर आपने पहले वाले दो फेसेस में अच्छे से लर्न किया है तो बैटर चांस है कि आपका थर्ड फेस अच्छा रहेगा। रोबर्ट एक स्टोरी बताते है कि कैसे उनके रिच डैड उन्हें  गेम्स आफ़ मोनोपोली सिखाया करते थे। रिच डैड का मानना था कि फाईनेंशियल स्टेटमेंट (Financial statements) एक बड़ा इम्पोर्टेंट डोक्यूमेंट(important statements ) है जो आप ग्रेजुएशन (graduation) के बाद ले सकते है। रिच डैड दो बड़े एफिशिएंट तरीके से सिखाते थे जिससे काम्प्लेक्स स्टफ भी सिम्पलर और रीपीटेटिवलगता था। आज रोबर्ट जो कुछ है उसमे इन दो एलीमेंटस का बड़ा हाथ रहा है। 


रिच डैड ने उन्हें समझाया कि एसेटस(assets) और लायेबिल्टी

(liabilities ) दो इम्पोर्टेट चीज़े है। उन्होंने समझाया कि एसेटस(assets ) पैसे आपकी जेब में डालती है और लाएबिलिटी(Liability)पैसे आपकी जेब से निकलवाती है और ये समझना रोबर्ट के लिए एकदम सिम्पल था। रोबर्ट क्लियर करते है कि पेरेंटस को अपने बच्चो से हमेशा गुड ग्रेडस की उम्मीद नहीं करनी चाहिए बल्कि ये जानना ज्यादा इम्पोर्टेट है कि उनके बच्चे किस फील्ड में जीनियस है । नेक्स्ट वो कुछ टिप्स देते है ताकि आप बी और आई सेक्टर्स में बेस्ट बन सके। पहली बात ये कि आपको हर फील्ड में बेस्ट लोग रिक्रूट(recruit) करने होंगे जो आपके बेस्ट एडवाइजर(advisors) बन सके। 


सेकंड चीज़ कि आपको अपनी मदर :


लेंगुएज( Mother language ) की ही मल्टी लेंगुएज सीखनी होगी यानी हर प्रोफेशन की लेंगुएज। फाइनली आपको हर किसी के साथ रिस्पेक्टफूली पेश आना सीखना होगा। जब आप एम्प्लोयीज़ को रिस्पेक्ट देते है तो वे भी 10 गुना ज्यादा मेहनत करते है और वो भी सेम सेलेरी में। बिजनेस इंडस्ट्री का एक और इम्पोर्टेट पाइंट ये है कि बिजनेस कोई डेमोक्रेसी नहीं है। एम्प्लोयीज़ को वही करना पड़ता है जो उनके एम्प्लायर (employer) उनसे चाहते है। उन्हें बोलने का मौका नहीं दिया जाता कि काम कैसे करना है | कोनसीक्वेंटली (consequently) एम्प्लायर(employer) ही सारे लोस अफोर्ड करता है नाकि एमप्लोयीज़ (employees)।


ए और सी स्टूडेंटस के बीच मेजर डिफ़रेंस यही है कि ए स्टूडेंट फाईनेंशियल सिक्‍योरिटी (Financial security) देखता है जबकि सी स्टूडेंट हमेशा ऐसे डिसीज़न लेकर रिस्क लेने को रेडी रहता है जो उसकी फाईनेंशियल लाइफ को लाइन पर लाकर रख देते है। ए स्टूडेंटस बैड पीपल नहीं है, बस वो थोडा ऐसे रिस्क लेने में डरते है जो उन्हें एकदम अमीर या गरीब बना दे। अगर आपको एक एंपप्रेन्योर (entrepreneur) बनना है तो आपको किसी भी सेल्स ट्रेनिंग रूट में खुद को एस्टेबिलिश(Establish)करना होगा। फिर आपको लर्न करना होगा कि कैपिटल के लिए ओपीएम (OPM)यानी (अदर पीपल्स मनी) कैसे यूज़ की जाए। इसका एक तरीका है


आप रियल एस्टेट इन्वेस्टमेंट कोर्सेस

(real estate Investment course ) की हेल्प ले। हर बच्चे को हमेशा एक्टिव लेनर होना चाहिए फिर चाहे उनका फील्ड कुछ भी हो। इसका पीछे पाइंट ये है कि वे जो चाहे फील्ड चूज़ करे उसमे मनी इनकार्पोरेटेड (Money incorporated ) ज़रूरी है। और यही वजह है कि पेरेंटस बच्चो की फाईनेंशियल एजुकेशन जितनी जल्दी पोसिबल हो उतना बैटर होगा। एक और चीज़ कंसीडर करनी चाहिए कि हम अपने पास्ट एक्पिरियेंश से लर्न करे, जो हो गया उसका रिग्रेट ना करे बल्कि अपने एक्स्पिरियेंश में भी कुछ अच्छी चीज़ ढूढे।

          

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