व्हाई वेलेडिक्टोरियंस फेल
(Why Valedictorian Fail )
फूटबाल प्लेयर्स को देखो, क्या आपको लगता है कि जो प्लेयर एक्स्ट्रा ओर्डिनेरी (extraordinary ) लेता है और नार्मल से हटकर खेलता है, उसे ज्यादा एप्रीशियेट (appreciate)किया जाता है या उस प्लेयर को जो सेफ, सिक्योर मूव्स (Secure moves ) लेता है ? सेम चीज बिजनेस लाइफ में भी अप्लाई होती है। स्टडीज से (Studies) ये प्रूव हो चूका है कि जो स्टूडेंट अच्छे ग्रेडस लाते है ज़रूरी नहीं कि आगे चलकर उन्हें हाई सेलेरी जाब ही मिलेगी। एक स्टूडेंट रूल्स फोलो करने में अच्छा हो सकता है
लेकिन ज़रूरी नहीं कि वो कुछ एक्स्ट्राओर्डिनिरी (extraordinary) करेगा। और एक स्टूडेंट ये सोचते हुए बड़ा होता है कि मिस्टेक करना बुरी बात है और यही चीज़ उसे एक सिक्योर फेस में रहने को मजबूर कर देती है। और जैसा कि फ़ूटबाल के एक्जाम्पल से हम बोल सकते है कि एक डिफेंडर बनकर सक्सेसफुल होने का मतलब ये नहीं कि आपको अटैकर बनकर भी सक्सेस ही मिलेगी। एस और ई सेक्शन (S Or E section) की सक्सेस बी या आई सेक्शन की सक्सेस की गारंटी नहीं है
व्हाई रिच पीपल गो ब्रोक
(Why Rich people Go Broke) e
ये रियल स्टोरी है जो बताती है कि लाइफ में चेंज की इम्पोर्टेस है और इसे कैसे समझे। ओल्ड टाइम्स में ग्रीस काफी स्ट्रोंग नेशन हुआ करता था जिसने बाकि दुनिया को आर्ट, नालेज आफ़ अल्फाबेट वगैरह दिया। बैंकरप्सी (bankruptcy) के बाद से ग्रीस अब दुनिया के इकोनोमिकली वीक( Economically Weak) देशो में से एक है। अगर ग्रीक प्रेजिडेंट (president ) ये बात समझ लेते कि बदलाव को रोका नहीं जा सकता तो आज ग्रीक के हालात शायद डिफरेंट होते। एक चीज़ जो वक्त के साथ बदल रही है लेकिन स्कूल्स में नहीं सिखाई जाती वो है कंटेंट वर्सेज कंटेक्स्ट (Constants Context ) स्कूल्स कंटेंट पर फोकस करता है जैसे कि रीडिंग और राईटिंग लेकिन ये कन्टेक्स्ट यानी पर्सन पर फोकस नहीं करता है।
अपना कंटेक्स्ट चेंज करना लाइफ सेविंग हो सकता है। वो टोन चेंज कर दो जिस टोन में तुम खुद से बात करते हो, “आई विल नेवर बी रिच” के बदले खुद को बोलो” ब्रिंग ओं मोर चैलेंज”। अगर आप रिच बनना चाहते है तो भ्री टाइप की इनकम को समझना ज़रूरी है; ओर्डिनेरी, पैसिव और पोर्टफोलियो। ओउडिनिरी है पेचेक मनी और जिस पर सबसे ज्यदा टैक्स लगता है। पैसिव है जब आपको कैपिटल गेन्स मिलता है और पोर्टफोलियो होता है रेंटल मनी जिस पर सबसे कम टैक्स होता है। 7 टाइप की इंटेलीजेन्स होती है जो डिफरेंट माइंड के लोगो में पायी जाती है।
YE है वेबल लिंगुयेस्टिक
(Verbal-linguistic) लोजिकल मैथमेटिकल(logical -mathematical बाडी काईनेथस्टिक (body-kinesthetic ) स्पेटिअल(spatial) म्यूजिकल इंटरपर्सनल (musical enterpersonal) और इंट्रापर्सनल (entrapersonal) और सक्सेस के लिए मोस्ट इम्पोर्टेट है इंट्रापर्सनल इंटेलीजेन्स (entrapersonal intelligence) जहां कोई पर्सन कोई भी एक्शन लेने से पहले खुद से सवाल करता है। हाई इंट्रापर्सनल इंटेलीजेन्स (high entrapersonal intelligence) वाले लोगों को अक्सर ऐसे डिसक्राइब किया जाता है” ही इज कूल अंडर प्रेशर”। कुछ लोग इमोशनली डेवलप नहीं हो पाते हालाँकि वे फिजिकली और मेंटली डेवलप होते है। लेकिन ये चीज़ बिजनेस वर्ल्ड के लिए हार्मफूल है और ऐसे लोग माइंड ग्रास्प (graps) नहीं कर पाते जोकि मनी ग्रास्प करने से बैटर है क्योंकि आपका माइंड ही आपको रिच बना सकता है।
Why Geniuses Are Generous
व्हाई जिनियेसेस आर जिनियेसे
बच्चो की प्राब्लम यही है कि वे टोटली (totally) अपने पेरेंट्स पे डिपेंड करते है। और एक ग्रेटर स्केल में स्टूडेंटस जो ग्रेजुएट (graduate ) है, गवर्नमेंट पे डिपेंड करते है। अमेरिकन्स अब फील करते है कि उन्हें “अमेरिकन ड्रीम” फुलफिल करना का पूरा हक़ है। रोबर्ट टी। कियोसाकी “द बैटल फार द सोल आफ़ कैपेटा लिज्म” (The battle for the soul of capitalism) बुक से एक कोट (QUOTE)एक्सप्लेन करते है कि मैनेजरीयल कैपेटिलिस्ट (Managerial Capitalists )और टू कैपेटीलिस्ट (true capitalists) के बीच एक मेजर डिफ़रेंस है 'मैनेजरियल कैपिटालिस्टस बिजनेस के ओनर नहीं होते, उन्हें तो बस पेमेंट मिलती रहती है चाहे बिजनेस लोस में हो या प्राफिट में। लेकिन टू कैपिटालिस्टस (True capitalists) बिजनेस ओनर होते है जो फाईनेंशियल रिस्क लेते है।
स्कूल से ग्रेजुएट होने वाले स्टूडेंटस ज़्यादातर बी स्टूडेंटस होते है जिनमे से कुछ बाद में चलकर ब्यूरोक्रेटस बनते है। और ब्यूरोक्रेटस (Bureaucrats ) वो लोग होते है जिनके पास आथोरिटी (authority) होती है और हाइली पेड (paid ) होते है फिर चाहे
वो काम अच्छा करे या बुरा। कुछ लोग शायद ये सोचे कि अगर लोट फाइनेंशियली एजुकेटेड (financial educated) होंगे तो वे और भी ज्यादा ग्रीडी।( greedy) होंगे। इनफैकट(In fact ) सच्चाई इसके अपोजिट है। जब लोग फाईनेंशियली एजुकेटेड (financial educated ) होते है तो वे ज्यादा सिक्योर फील करते है और अपने रिसोर्सेस (resources) पे कण्ट्रोल रखते है।
कोई भी कैपेटीलिस्ट (Capitalist) ग्रीड़ी (greedy) लोगो से बच कर नहीं जा सकता। लेकिन ये भी सच है कि अगर बैड पार्टनरशिप है तो गुड पार्टनरशिप भी है। लोगो के ग्रीडी (greedy) होने की वजह बेसिकली प्रापर स्कूल एजुकेशन ना मिल पाना है जो “मासलो'स सेकंड लेवल: सिक्योरिटी “ (maslow seconds level :Safety) " में फेल हो जाते है। और मेन प्रोब्लम है कि जब स्कूल्स मासलो'स सेकंड” लेवल फुलफिल करने में फेल होते है तो उसका रिजल्ट होता है गरीबी में बढ़ोतरी। और फिर ये मोर लेवल आफ़ वायोलेंस (More level of violence ) को बढाता है।
पार्ट टू इंट्रोडक्शन
(part to Introduction )
क्यों ए स्टूडेंटस (A Students) बिजनेस लाइफ में कामयाब नहीं हो पाते है? क्योंकि उन्हें यही सिखाया गया है कि सिर्फ एक ही राईट आंसर होता है और ये बात बिजनेस लाइफ में सच नहीं है। और सबसे बड़ी बात कि उन्हें स्कूल्स में पढाये जाने वाले नावेल्सजैसे अ क्रीशियन कैरोल” (A Christmas Carol") भी यही आईडिया सपोर्ट करते है। सक्सेसफुल एंटप्रेन्योर्स (successful entrepreneurs) वो होते है जो अपने माइंड में दो अपोजिंग आईडियाज लेकर चलते है फिर भी एफिशियेंश्ली (efficiently) काम करते है। इस बुक का सेकंड पार्ट मेनली एजुकेशनल इंटेलीजेन्स (educational intelligence ) के बारे में है कि कैसे अपोजिंग आईडियाज (opposing ideas) को एक्सेप्ट करके मल्टीपल पाइंट आफ़ व्यूए (Multiple point of view ) को एप्रीशियेट किया जाये। और उन चीजों को एप्रीशियेट करना सीखो जो हमेशा आपको टेबू (taboo) लगते रहे।
द एनटाईटलमेंट मैंटेलिटी
(The Entitlement mentality )
जैसे बच्चो को लगता है कि उनके पेरेंटस को उन्हें फ़ूड प्रोवाइड कराने के लिए एनटाईटल्ड (entitled) है ऐसे ही हमारे स्कूल ग्रेजुएट भी सोचते है कि वो गवर्नमेंट से सिक्योरिटी पाने के लिए एनटाईटल्ड है। यानी गोवेर्नमेंट ही उन्हें जाब वैगेरह प्रोवाइड कराएगी। ये मेंटेलिटी (mentality) स्कूल्स में ओरिजिनेट (originate) होती है क्योंकि वहां पढ़ाने वाले टीचर्स खुद यही सोचते है कि उन्हें गवर्नमेंट की तरफ से बैटर लिविंग की फेसिलिटीज़ दी जायेंगी
अनदर पॉइंट ऑफ़ व्यू ओन इंटेलीजेन्स
Another point of view on intelligence
एंटप्रेन्योरशशिप (Entrepreneurship) का मतलब ये नहीं कि आप खुद काम करके प्राफिट कमाए बल्कि इसका मतलब है कि आप लोगो को हायर करते है और जाब पर रखते है, उन्हें पे करते है और अपना प्राफिट भी कमाते है। एक एक्जाम्पल है मोविंग द लोन (mowing the loan।) जब तक लोन काफी बड़ा नहीं है ये डूएबल ( Doable ) है। एक बार जब ये बढता जाता है तो आपके लिए ज़रूरी हो जाता है कि आप इसे करने के लिए लोगो को हायर करे। हमे चाहिए कि हम अपने बच्चो को अपोर्च्यूनिटी (opportunities ) ग्रेब करना सिखाये (जैसे कि ऐसे लोग ढूंढना जो अपना लोन मोव्ड करवाना चाहते है) (like finding people who need their loan mowed ) और कैसे मिनिमम एफर्ट मे लोगों से काम करवा कर प्राफिट कमाना है।
अनदर पॉइंट ऑफ़ व्यू ओं रिपोर्ट कार्डस
(Another point of view On Report Cards )
नार्मल सिक््वेंस कुछ यूं होता है। आप हाई ग्रेडस के साथ स्कूल पास करते है, आपको एक हाई सेलेरी वाली जाब मिलती है और फिर आपकी शादी होती है, बच्चे होते है फिर बच्चे के साथ साथ खर्चे भी बढ़ते जाते है। आप फिर अपने पेरेंटस से पैसे उधार लेते है और फिर रिस्क पे लाइफ का गुज़ारा चलता है, पेचेक से पेचेक पर डिपेंड रहते है। ये सब ओरिजिनेट होता है स्कूल्स में बैलेंस शीटस के बदले इनकम स्टेटमेंट पे फोकस करने से। अर्ली एज (early age ) से ही फाइनेंशियल एजुकेशन इम्पोर्टेंट है ताकि एस्सेट और लायेबीलिटीज का डिफ़रेंस पता हो और ये पता रहे कि कैसे किसी की लायेबिलिटीज किसी और के लिए एस्सेट बन जाती है। जैसे कि मोर्टेज (mortgage ) सिटीजन और बैंक से रिलेटेड है। अपने बच्चो को इन दोनों के बीच का डिफ़रेंस समझाए। ईजी चीजों से स्टार्ट करे जो उन्हें पता हो और उनमे इंटरेस्ट पैदा करे इस बारे में और जानने के लिए। उन्हें फाइनेंशियल स्टेटमेंट की पावर बताये कि स्कूल छोड़ने के बाद ये उनकी रिपोर्ट कार्ड होगी।
THANKS FOR READING!!!
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