* part 3 And part 4 *

Part 3:
     
1960 के दिनों में अगर बच्चो से पुछा जाता था कि वे बड़े होकर क्‍या बनेगे तो सबके पास यही जवाब होता था कि वे अच्छे ग्रेडस लायेंगे और डाक्टर बनेंगे। तब सबको यही लगता था कि अच्छे ग्रेडस लेकर वे बहुत पैसा कमा सकेंगे। हालांकि उनमे से बहुत बच्चे आज बड़े होकर डाक्टर बन चुके है। बावजूद इसके उनमे से काफी लोग आज भी फैनेंशियेली स्ट्रगल करते नज़र आयेगे। क्योंकि उन्हें हमेशा यही लगा कि ज्यादा पैसा कमाने से उनकी सारी परेशानियां दूर हो जायेंगी। मगर आज के दौर में ऐसा नहीं है। आज बहुत से बच्चे फेमस एथलीट बनना चाहते है या फिर सीईओ, या फिर कोई मूवी स्टार या राक स्टार। क्योंकि उन्हें पता है कि सिर्फ अच्छी पढ़ाई और अच्छे ग्रेडस के भरोसे बैठकर वे करियर में सक्सेस नहीं पा सकते। आजकल फैनेंशियेल नाईटमेयर बहुत आम हो गया है। 

अक्सर नए शादी शुदा जोड़े ये सोचते है कि उनकी सेलेरी अब डबल हो जायेगी क्योंकि दोनों जने कमा रहे है। एक छोटे से घर में रहते हुए वे अब बड़े घर के सपने देखते है। इसलिए वे पैसा बचाना शुरू कर देते है। इसकी वजह से उनका सारा ध्यान सिर्फ अपना करियर बनाने पर होता है। उनकी कमाई बड़ने लगती है तो ज़ाहिर है उसी हिसाब से खर्चे भी। अब जब आप फैनेंशियेली लिटरेट हुए बिना पैसा बनाते है या बिना सोचे समझे उसे खर्च करते है तो होता ये है कि आप पहले से भी ज्यादा खर्च करने लगते है। ये एक ऐसा चक्कर है जो फिर चलता ही रहता है। 
नए जोड़े ने अब इतना पैसा कमा लिया कि वे एक बड़ा घर खरीद सके। उन्हें तो यही लगेगा कि वे अब थोड़े अमीर हो गए है। मगर असलियत तो ये है कि बड़े घर के साथ उन्होंने नयी लाएबिलिटीज़ भी खरीद ली है। उनके कैश फ्लो में अब प्रापर्टी टैक्स का खर्च बड गया। अब उन्हें एक नयी गाडी भी चाहिए, फर्नीचर भी, सब कुछ नया। उनकी लाएबिलिटीज़ बडती ही चली जा रही है। और ज़्यादातर होता यही है कि इनकम के साथ साथ खर्चे भी बड़ने लगते है। फिर एक दिन अचानक इस सच्चाई का खुलासा होता है, मगर तब तक हम इस रेट रेस में बुरी तरह फंस चुके होते है। 
फिर ऐसे ही लोग हमारे लेखक रोबर्ट के पास आकर पूछते है कि अमीर कैसे बना जाए ? अब यही सवाल तो मुसीबत की जड़ है क्योंकि सबको लगता है कि पैसा ही हर चीज़ का इलाज़ है। ये मानना ही एक बड़ी गलती है। उनकी समस्या ये नहीं है की वे ज्यादा नहीं कमा रहे। बल्कि ये है कि जो कुछ उनके पास है उसे हेंडल कैसे करे। एक कहावत है जो यहां पर लागू होती है ' जब तुम खुद को एक गहरे गड्डे में पाओ तो और खोदना छोड़ दो' 
क्यों ज़्यादातर लोग पब्लिक स्पीकिंग से घबराते है? मनोचिकित्सको का मानना है कि लोग इसलिए घबराते है क्योंकि उन्हें रिजेक्शन का डर होता है, औरो से अलग होने का भय होता है। लोग हमारे बारे में क्या सोचेंगे या हम पर कहीं हंस ना दे, यही सोच कर अधिकांश लोग पब्लिक स्पीकिंग से दूर भागते है। वे वही करना पसंद करते है जो सब कर रहे होते है। वे खुद को भीड़ का हिस्सा बनाकर संतुष्ट हो जाते है। "आपका घर आपका सबसे बड़ा एस्सेट है 'लोन लीजिए अब प्रमोशन हो गया है अब सेलेरी बड गयी है तो नया घर लो ,यही सब बाते हम लोगो से सुनते रहते है। 

और फिर हम भी उसी रास्ते पर चल पड़ते है क्योंकि जो सब कर रहे है वो ज़रूर सही होगा। है कि नहीं ? मगर नहीं, ऐसा बिलकुल नहीं है। अमीर डैड ने कहा था कि जापानीज़ लोग तीन चीजो की ताकत जानते थे। तलवार, कीमती जवाहरात और शीशा। तलवार बाजुओ की ताकत का प्रतीक है, कीमती जवाहरात पैसे की ताकत का और शीशा खुद के अंदर छुपी हुई ताकत को दिखाता है। और वही हमारी सबसे बड़ी ताकत है। जब आप खुद को जानते हो, शीशे के सामने अगर आप खुद से सवाल पूछ सकते हो कि मै सही हूं या मुझे भी भीड़ का हिस्सा बनकर रहना चाहिए, तो जो जवाब आपको मिलेगा वही आपकी असली ताकत है। गरीब और मिडल क्लास खुद को पैसे का गुलाम बनने देते है इसीलिए वो कभी अमीर नहीं बन पाते।
 part 4:

16 साल के रोबर्ट और माइक अमीर डैड के साथ हर उस मीटिंग में जाया करते थे जो वे अपने एकाउंटेंट, मेनेजेर्स, इन्वेस्टर और एम्प्लोयियों के साथ रखा करते। यहां एक ऐसे अमीर डैड देखने को मिलते है जो पढ़े लिखे नहीं है, जिन्होंने ।3 साल में ही स्कूल छोड़ दिया था मगर आज वो मीटिंग्स रखते है, अपने नीचे काम करने वाले पढ़े लिखे लोगो को आर्डर देते है, उन्हें बिजनेस के टिप्स समझाते है। एक ऐसा इंसान जो भीड़ का हिस्सा नहीं बना, जिसने रिस्क लिया और जिसने लोगों की परवाह नहीं की। जिसे ये डर नहीं था कि लोग उसके बारे में क्या सोचेंगे ? इन मीटिंग्स का नतीजा ये हुआ कि लेखक और उनका दोस्त दोनों ही स्कूली पढ़ाई में मन नहीं लगा पाए। 

जब भी उनकी टीचर कोई काम देती थी, उन्हें रूल्स के  हिसाब से करना होता था। उन्हें एहसास हुआ कि स्कूली पढ़ाई किस तरह से बच्चो की प्रतिभा को निखरने नहीं देती। उनकी क्रियेटिविटी को मार कर उन्हें एक सांचे में ढाल कर इस समाज का एक मशीनी हिस्सा भर बना देती है। और उन्हें टीचर की इस बात से भी इंकार था कि अच्छे ग्रेडस लाकर ही सक्सेसफुल और अमीर बना जा सकता है। एक दिन राबर्ट की अपने गरीब डैड से बहस हो गयी। उनके पिता का मानना था कि उनका घर उनके लिए सबसे बेस्ट इन्वेस्टमेंट है। 

मगर वो एक रेट रेस में भाग रहे थे। उनकी इनकम और खर्चे बराबर ही थे। उन्हें पूरा करने के लिए उनके पास एक पल की भी फुर्सत नहीं थी। यही बात राबर्ट उन्हें समझाना चाह रहे थे कि उनके पिता के लिए वो घर एस्सेट नहीं लाएबिलिटी है। घर पर उनके पैसे खर्च हो रहे थे बदले में मिल कुछ नहीं रहा था। ये बात उनके गरीब डैड समझ नहीं पा रहे थे और यही फर्क था गरीब और अमर डैड के बीच। खैर, उनकी बहस चलती रही। उन्होंने अपने गरीब पिता को बताया कि अधिकतर लोगो की जिंदगी लोन चुकाने में ही निकल जाती है। जिस घर को वे खरीदते है उसके लिए वे 50 साल तक लोन भरते है। फिर एक और बड़ा घर लेते है और पाना लोन रिन्यू करवाते है। अब घर की कीमत भी उसी हिसाब से बड़ेगी या नहीं ये निर्भर करता है। 

कुछ लोग ऐसे भी है जिन्होंने घर खरीदने के लिए एक बड़ी रकम ली थी। जितनी घर की कीमत नहीं थी उससे ज्यादा क़र्ज़ उनके सर पर चढ़ गया। इसका सबसे बड़ा नुकसान लोगो को ये होता है कि वे बाकी जगह इन्वेस्टमेंट नहीं कर पाते क्योंकि उनका सारा पैसा उस घर पर लगा है। उन्हें कभी इन्वेस्टमेंट करने का मौका ही नहीं मिल पाता और ना ही वे इस बारे में कुछ सीख पाते है। और इस तरह कई एस्सेटस उनके हाथ से निकल जाते है। अगर इसके बदले लोग सिर्फ एस्सेटस पर ध्यान दे तो उनका फ्यूचर कहीं ज्यादा बेहतर हो सकता है। 

अब उदाहरण के लिए राबर्ट की पत्नी के पेरेंटस एक बड़े से घर में शिफ्ट हो गए। उनका सोचना था कि अपने लिए बड़ा और नया घर लेना एक सही फैसला है। क्योंकि बाकियों की तरह उन्हें भी घर लेना एक एस्सेटस लगता था। मगर वे ये जानकर हैरान रह गए कि उस घर का प्रापर्टी टैक्स 1000 डालर था। ये उनके लिए एक बड़ी कीमत थी। और क्‍योंकि वे रिटायर हो चुके थे तो इतना पैसा टैक्स के रूप में भरना उनके रिटायमेंट बजट के बाहर था। बेशक हम ये नहीं कह रहे कि आप एक नया घर ना ले। बल्कि हम समझाना चाहते है कि जितने पैसे से आप एक बड़ा घर लेंगे उतने पैसे आप किसी एस्सेट में इन्वेस्ट करे तो बेहतर होगा। आपका एस्सेट आपके लिए कमाई करेगा और कुछ ही समय बाद आपके पास इतना पैसा होगा कि आप आसानी से मनपसंद घर ले पायेंगे वो भी बिना किसी लोन के। 
अमीर और ज्यादा अमीर क्‍यों होते रहते है, वहीँ मिडल क्लास आगे क्‍यों नहीं बड पाते, इसके पीछे भी एक वजह है। कारण सीधा है, अमीर एस्सेट खरीदते है जो उनका पैसा दुगना करता रहता है। उस पैसे से उनके सारे खर्चे मजे में निपट जाते है। और मिडल क्लास क्या करते है? वे तो बस महीने की एक तारीख का इंतज़ार करते है जब उनकी सेलेरी आये। सारी की सारी सेलेरी तो खर्चो को पूरा करने में खत्म हो जाती है तो इन्वेस्टमेंट कहां से होगा। और फिर जब सेलेरी बडती है तो उस पर टैक्स भी बड़ जाता है और उसी हिसाब से बाकी खर्चे भी। फिर अंत में वही रेट रेस चलती रहती है। 

# एक कर्ज में डूबा समाज, जहां हम रहते है: 

अपने घर को एस्सेट समझना ही वो वजह है जो हमें कर्ज के बोझ तले दबाती है। आज यही अधिकतर लोगो की सोच है। अगर सेलेरी बड़ी है तो लोग सोचते है कि अब वे बड़ा सा घर ले सकते है क्योंकि उन्हें ये अपने पैसे का सही इस्तेमाल लगता है। इसके बदले अगर वही पैसा सही जगह लगाया जाए तो उनकी जिंदगी हमेशा के लिए बदल सकती है। लेकिन ऐसा हो नहीं पता क्योंकि उनका सारा वक्त हाड़ तोड़ मेहनत करने में चला जाता है। अपनी नौकरी को सेफ ज़ोन समझ कर वे उससे अलग कुछ सोच ही नही पाते। और साथ ही उनपर कर्ज का इतना बोझ होता है कि वे नौकरी छोड़ने का रिस्क ले ही नहीं सकते। 

अब ज़रा खुद से ये सवाल कीजिये कि आज आप नौकरी छोड़ कर बैठ जाते है तो कितने दिन आपका गुज़ारा चलेगा ? क्योंकि अगर आप फिनेंशियेली लिटरेट नहीं है, अगर आपने सारी उम्र सिर्फ सेलेरी के भरोसे ही काटी है, और एस्स्टस के बदले आपने लाएबिलिटीज़ ली है तो यकीनन आपकी जिंदगी एक कड़ी चुनौती है। सिर्फ नेट वर्थ के भरोसे आपका काम नहीं चल सकता। नेट वर्थ बताता है कि आपके पास वाकई में कितना पैसा है चाहे वो एक गैराज में पड़ी पुरानी कार के रूप में ही क्यों ना हो। अब भले ही वो कार कुछ काम की नहीं हो। जबकि वेल्थ का मतलब है कि आपके पास जो पैसा है उससे आप कितना और पैसा कमा रहे है। 

जैसे कि मान लीजिये आपके पास कोई एस्सेट है जिससे हर महीने मुझे 5000 डालर की कमाई हो जाती है, और हर महीने आपके 6000 डालर खर्चे है तो मै सिर्फ आधे महीने ही अपना गुज़ारा कर पाऊंगा। तो सोल्यूशन ये होगा कि अपने एस्स्टस से मिलने वाला पैसा बड़ा दे। जब वो 6000 डालर मिलने लगेगा तो आप रातो रात अमीर नहीं हो जायेंगे मगर इस तरह आप वेल्थी होने लगेंगे। अब अगर आप अचानक नौकरी छोड़ते भी है तो आपके एस्सेटस सारा खर्च कवर कर लेंगे। आप वेल्थी तभी बन पायेंगे जब आपके खर्च आपके एस्सेटस की ग्रोथ से कम रहे। 

# तीसरा सबक : अपने काम से काम रखे| 

दुनिया की सबसे बड़ी फ़ूड चेन मैक डोनाल्ड के फाउंडर रे क्रोक ने एक एमबीए क्लास में एक स्पीच दी। ये 1947 की बात है। उनकी ये स्पीच बड़ी ही शानदार थी, लोगो को प्रेरित करने वाली। स्पीच के बाद जब एमबीए क्लास के छात्रो ने कुछ वक्त उनके साथ बिताने की गुजारिश की तो वे उनके साथ बियर पीने चले गए। बातो बातो में रे ने अचानक एक सवाल किया “क्या आप लोग जानते है कि मै किस बिजनेस में हूं?” अब ये बात तो सबको मालूम थी कि वे हेमबर्गर बेचते थे। इस बात पर वे हंसने लगे और बोले कि उनका असल बिजनेस तो रियल एस्टेट है। क्योंकि मैक डोनाल्‍ड के लिए हर लोकेशन का चुनाव सोच समझकर किया जाता है। जहां उसकी फ्रेंचाईजी बनाई जाती है, वो जमीन भी साथ ही बेचीं जाती है। तो इसका सीधा मतलब है कि मैक डोनाल्ड की फ्रेंचाईजी खरीदने वाले को वो जमीन भी खरीदनी पड़ती थी। तो इस तरह से ये एक रियल एस्टेट बिजनेस भी हुआ। 

यही सबक अमीर डैड ने राबर्ट को सिखाया कि अक्सर लोग खुद के लिए छोड़कर बाकी सबके लिए काम करते है। वे टैक्स पे करके गवेमेंट के लिए काम करते है, उस कम्पनी के लिए काम करते है जहां वे नौकरी करते है, बैंक का मोर्टेज देकर उसके लिए काम करते है। और ये सब इसलिए क्योंकि हमारा एजुकेशन सिस्टम ही ऐसा है। स्कूल हमें एम्प्लोयी बनना सिखाता है नाकि एम्प्लायर। जो आप पढ़ते है वही आप बनते है। अगर आपने साइंस पढ़ी तो डाक्टर। मेथमेटिक्स पढ़ी तो इंजीनियर, मतलब जो आपने पढ़ा वो आप बने। अब मुसीबत तो ये है कि इससे छात्रो का कोई भला नहीं हो पाता क्योंकि वे नौकरी और बिजनेस के बीच के फर्क में उलझ कर रह जाते है। 

जब कोई पूछता है कि आपका क्या बिजनेस है तो आपको ये नहीं बोलना चाहिये कि ,मै तो एक डाक्टर हूं या एक बैंकर हूं, क्योंकि वो आपका प्रोफेशन है, बिजनेस नहीं। कहने का मतलब है कि आप जो करते है उसे अपना बिजनेस बनाईये, नौकरी नहीं। अपनी सारी उम्र दुसरो के लिए काम करके उन्हें अमीर करने में बर्बाद ना करे बल्कि खुद की जिंदगी को खुशहाल बनाने के लिए काम करे। 

बहुत से लोगो को इस बात का एहसास बड़ी देर से होता है कि उनका हाउस लोन उनकी जान ले रहा है। और फिर उन्हें लगता है कि जिसे वे एस्सेट मानने की गलती कर रहे थे दरअसल कभी एस्सेट था ही नहीं। जैसे उन्होंने कार ली, तो उससे जुड़े तमाम खर्चे उनकी लाएबिलिटीज़ बन गए। उन्हें पूरा करने के लिए नौकरी ज़रूरी है और अगर कभी वो सेफ जाब उनके हाथो से निकल गई तो उनकी मुसीबते शुरू हो जाती है। इसीलिए तो हम एस्सेट कालम पर इतना जोर दे रहे है ना कि आपकी इनकम कालम पर। और फिनेंशियेली सिक्‍योर होने का यही एक तरीका है। आप कितने अमीर है, ये जानने का सही तरीका नेट वर्थ इसलिए नहीं है क्योंकि जब भी आप अपने एस्सेटस बेचते है तो उनपर भी टैक्स लगता है। आपको उतना पैसा नहीं मिलता जितना कि आप सोचते है। आपके बेलेंस शीट के हिसाब से आपको जितना भी पैसा मिलेगा उस पर भी आपको टैक्स देना पड़ेगा। 

जो आप कर रहे है उसे एकदम मत छोडिये। ये किताब आपको कभी भी ये सलाह नहीं देगी। अपनी नौकरी करते रहिये पर साथ ही एस्सेटस भी जमा कीजिये। और एस्सेटस से मेरा मतलब है सही और असली मायने में एस्सेटस। मै ये नहीं कहूंगा कि आप कोई कार लीजिये क्‍योंकि वे मेरी नज़र में एस्सेट नहीं है क्योंकि जैसे ही आप उसे चलाना शुरू करते है वो अपनी कीमत का 25% खो देती है। जितना हो सके खर्चे में कटौती करे और लाएबिलिटीज़ घटाए। अब किस तरह के एस्सेटस खरीदे जाने चाहिए ? यहां हम आपको कुछ उदाहरण देते है; 
        
                THANKS FOR READING!! 

Note :  ( Last part of book) part 5 and 6 coming soon in next post!!